Monday 31 December 2012

नया वर्ष ?

क्या उपलब्धि है हमारी
क्या ख़ास किया हमने इस वर्ष ?
क्या करने की अभिलाषा है
हम सब की अगले वर्ष ?
ऐसे ही पन्ने पलटते जायेंगें
कैलेंडर्स के ....
हम गिनते रह जायेंगें 13 /14 / 15
और भी न जाने कितने
नए वर्ष ऐसे ही आते जायेंगें ?
क्या कभी हम पुरुषत्व के उस
दल दल से बाहर आकर
समझ सकेंगें
नारी के कोमल मन को ?
दे सकेंगें उसको वह सम्मान
जिसकी हक़दार होती है
वह माँ की कोख़ से ...
फिर भी क्यों मनाएं एक
और दिखावटी नया वर्ष ?
जब हम आज भी जी रहे हैं
उसी युगों पुरानी मानसिकता में
जो नहीं बदल सकती या
बदलना ही नहीं चाहती .....

Saturday 29 December 2012

चुप ही रहूँ ....

तेरा ये चुभन भरा बलिदान,
आज छलनी कर रहा है स्वाभिमान
किसी और लोक में बसी तू,
चुप रहकर भी रुला रही है ......
किस तरह सांत्वना को समेटूं
किस तरह जवाब दूं उन
घुटी हुई चीखों का
जो दफ़्न हो गयीं
तेरे अधूरे सपनों की तरह ?
बोलना तो है पर
लगता है खिंच गयी ज़बान मेरी ...
तेरे उन सवालों के जवाब
पुरुष मानसिकता में खोजने में
जो आज भी उतने ही अधूरे हैं
बिलकुल तेरे सपनों की तरह .....
जो केवल मन के कैनवास
पर उड़ते थे उन सावन के
बिंदास बादलों की तरह
जिन्हें क़ैद कर दिया किसी ने
पूस की सन्नाटे भरी रात में .....
तू बन गई एक प्रतिमूर्ति
पुरुष के खोखले दिखावे भरे प्रतीकों
से उलझ जाने में ...
थम सी रही है आज फिर से कलम
उस स्याह रात की याद में
सूखी हुई स्याही से क्या लिखा जाए
दिल की मासूम परत पर
चलो फिर से कोई नश्तर चलाकर
सुर्ख पर सर्द हुए
तेरे उस खूं की कसम
गर्म अब खून हमारा भी
रहेगा बरसों ......