मत पूछो मेरे दिल से, मेरे दिल की चाह को।
पहली से आख़िरी सभी चाहत में तुम्हीं हो ॥
हो चाहें जितनी दुनिया, हों चाहे राहें कितनी ?
शुरुआत से अभी भी मेरी ज़न्नत में तुम्हीं हो।
हर एक की दुआ है कि, मिल जाये साथ तेरा ।
उठते हुए हर हाथ की मन्नत में तुम्हीं हो ॥
कुछ लोग जी गए थे, किसी और राह में ।
इस जिंदगी की राह और राहत में तुम्हीं हो॥
मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Sunday, 20 December 2009
Friday, 4 December 2009
मन की चाहत
जब जब याद तुम्हारी आई
मन के पंछी मुक्त हुए,
फिर से एक तमन्ना झांकी
दिल के सूने कोटर से.
देख तुम्हारी फिर तस्वीरें
दिल में आहट होती है,
कोयल जैसे निकल रही है
फिर बसंत के आने में.
तेरी चिट्ठी हाथ में आई
पंख लगे अरमानों को,
भीगे सूखे फिर से अक्षर
मन का सावन बरसा जब.
जीने के तो लाख बहाने
फिर भी मन को भाएं ना,
सात जनम फिर से लगते हैं
साथी सच्चा पाने में.
मन के पंछी मुक्त हुए,
फिर से एक तमन्ना झांकी
दिल के सूने कोटर से.
देख तुम्हारी फिर तस्वीरें
दिल में आहट होती है,
कोयल जैसे निकल रही है
फिर बसंत के आने में.
तेरी चिट्ठी हाथ में आई
पंख लगे अरमानों को,
भीगे सूखे फिर से अक्षर
मन का सावन बरसा जब.
जीने के तो लाख बहाने
फिर भी मन को भाएं ना,
सात जनम फिर से लगते हैं
साथी सच्चा पाने में.
Subscribe to:
Posts (Atom)