Monday 10 November 2008

वो औरत

बाध बटती
वो औरत
कभी घास को पीटती
कभी भिगोती,
माथे पर आए श्रम बिन्दुओं
को पोंछती.
उसके छोटे बच्चों कि
कुछ अधिक संख्या
जो उसके काम को
कुछ हल्का करती
चरखे से घास को
कातती
एक नया आयाम और
संदेश देती.
कि मिलकर रहे तो
एक दूसरे का संबल
बिखरे तो
तिनके की तरह केवल.
बच्चे को दुलराती
बड़ी बेटी कि गोद में
छोटे बेटे को
देख मुस्काती
बड़े बेटे को व्यापार का
अर्थशास्त्र समझाती
बटी हुई बाध बेचने
का गुर सिखाती
शाम को अपने
परिवार के लिए चार पैसे
भले ही मिले हों
वे इतनी मेहनत से
वह नहीं जानती कि
उसके इतने बच्चे
उसकी समस्या हैं या कि
उसकी आर्थिक तंगी
मिटाने का समाधान
फिर भी तो रोज़ ही
वो औरत
बाध बटती......

2 comments:

makrand said...

उसकी आर्थिक तंगी
मिटाने का समाधान
फिर भी तो रोज़ ही
वो औरत
बाध बटती......
bahut sunder sir
kabhi humara dustbin bhi dekhen
regards

radio nawab said...

bahut khoob janab...dard jhalkta hai...