क्यों नहीं आख़िर
क्यों नहीं ?
सावन में क्यों नहीं बरसता ?
पानी !!!!
जीवन में सूखे ठूंठों पर,
मुरझाई हुई आशाओं पर.
पथराती हुई आँखों से,
झूठी मुस्कुराहटों तक...
कहीं कुछ तो ज़रूर है,
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
अपनों के रिश्तों से,
परायों के बंधन तक.
सूखती हुई दोस्ती पर
हरियाती हुई दुश्मनी में
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
जीवन की गहराई से,
मरने की सच्चाई तक.
सूखते हुए कंठ से और
भूख से बिलबिलाने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है.....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
आँखों के शील से,
कुचली उत्कंठाओं तक.
रूप के सिमटने से,
मन के मचलने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?