Thursday 22 October 2015

नवरात्रि

आई नवरात्रि चलो फिर से झुकाएं शीश।
मातारानी देखो सदा भक्तों की सहाय हैं।।

चंड-मुंड, रक्तबीज राह रोकने खड़े हैं।
मातृशक्ति की कृपा से होना बेड़ा पार है।।

संस्कार लुप्त हुए सभ्यता पर संकट है।
शिवदूती बन फिर सबको जगाओ माँ।।

तेरी आराधना की भक्ति लौ जले ही सदा।
अंबे करो सब पर कृपा समान रूप माँ।।

Tuesday 23 December 2014

धर्म की लूट

हर कोई बैठा जगत में धर्म का खाता खोल
तेरे मन में क्या है बन्दे तू भी तो कुछ बोल
तू भी तो कुछ बोल बदलना तुझको भी है ?
तेरे धर्म में मिलता तुझको ठौर नहीं है ?
लव जिहाद या घर को वापस तू भी हो ले
फिर मत कहना पड़ा नहीं कुछ तेरे पल्ले ।। 

Wednesday 17 December 2014

जन्नत और ज़ुल्म

तेरी आँखों का पानी तो सूखेगा ही नहीं
खून के रंग से कुछ खौफ तुझे है भी नहीं
तेरा मालिक कभी और अलग होगा नहीं
तेरी नफरत से भला तेरा कभी होगा नहीं

अब भी मौका है ज़रा देख ख़ुशी बच्चों की
कितने मासूम हैं तू खुद भी पिघल जायेगा
तेरी वो सोच उन्हें कुछ कभी दे सकती है
कभी पूछ के तो देख कभी अपने से ?

#पेशावरहमला 


Thursday 20 June 2013

रूद्र

हे ! रूद्र रूप
हे ! महारुद्र,
ये रौद्र रूप
तुम मत धारो ...

तुम विष को धारण
करते हो,
अपने जन को
मत संहारो ....

तुम भोले हो
तुम अविनाशी,
हो शांत
नहीं अब नाश करो ....

तुम ज्ञानी हो
सर्वज्ञ तुम्हीं,
हम अज्ञानी
मत क्रोध करो ....

बद्री विशाल !
तुम हो विशाल,
भोले के तांडव
को रोको ....

हम तो सेवक
तेरे केदार,
बस अब
त्रिनेत्र को बंद करो ....

हे ! विश्वनाथ अब
स्थिर होकर,
प्रभु "आशुतोष"
का रूप धरो ........

Monday 31 December 2012

नया वर्ष ?

क्या उपलब्धि है हमारी
क्या ख़ास किया हमने इस वर्ष ?
क्या करने की अभिलाषा है
हम सब की अगले वर्ष ?
ऐसे ही पन्ने पलटते जायेंगें
कैलेंडर्स के ....
हम गिनते रह जायेंगें 13 /14 / 15
और भी न जाने कितने
नए वर्ष ऐसे ही आते जायेंगें ?
क्या कभी हम पुरुषत्व के उस
दल दल से बाहर आकर
समझ सकेंगें
नारी के कोमल मन को ?
दे सकेंगें उसको वह सम्मान
जिसकी हक़दार होती है
वह माँ की कोख़ से ...
फिर भी क्यों मनाएं एक
और दिखावटी नया वर्ष ?
जब हम आज भी जी रहे हैं
उसी युगों पुरानी मानसिकता में
जो नहीं बदल सकती या
बदलना ही नहीं चाहती .....

Saturday 29 December 2012

चुप ही रहूँ ....

तेरा ये चुभन भरा बलिदान,
आज छलनी कर रहा है स्वाभिमान
किसी और लोक में बसी तू,
चुप रहकर भी रुला रही है ......
किस तरह सांत्वना को समेटूं
किस तरह जवाब दूं उन
घुटी हुई चीखों का
जो दफ़्न हो गयीं
तेरे अधूरे सपनों की तरह ?
बोलना तो है पर
लगता है खिंच गयी ज़बान मेरी ...
तेरे उन सवालों के जवाब
पुरुष मानसिकता में खोजने में
जो आज भी उतने ही अधूरे हैं
बिलकुल तेरे सपनों की तरह .....
जो केवल मन के कैनवास
पर उड़ते थे उन सावन के
बिंदास बादलों की तरह
जिन्हें क़ैद कर दिया किसी ने
पूस की सन्नाटे भरी रात में .....
तू बन गई एक प्रतिमूर्ति
पुरुष के खोखले दिखावे भरे प्रतीकों
से उलझ जाने में ...
थम सी रही है आज फिर से कलम
उस स्याह रात की याद में
सूखी हुई स्याही से क्या लिखा जाए
दिल की मासूम परत पर
चलो फिर से कोई नश्तर चलाकर
सुर्ख पर सर्द हुए
तेरे उस खूं की कसम
गर्म अब खून हमारा भी
रहेगा बरसों ......

Wednesday 21 March 2012

सब

वो आरज़ू भी जुस्तजू भी और सब भी हैं
मेरे नहीं तो खुद कहो वो और किसके हैं ?
पाया उन्हें जो दिल से तो फिर चाह न रही
उनको बना के जान अब जिंदा हुआ हूँ मैं........