गाँवों में अब हो रहा १०० दिन का व्यापार,
नेता बाबू लूटते जनता की सरकार ॥
मीरा जी ने कह दिया हो चाहे तकरार,
हर सांसद को चाहिए १०० दिन का रोज़गार।।
१०० दिन का रोज़गार मचाएं जितना हल्ला,
खाने को तो मिले मलाई और रसगुल्ला ।।
मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Saturday 29 August 2009
Thursday 27 August 2009
क्यों ?
खुशियाँ
कब आती हैं
आँगन में कैसे पता चले ?
मन के भाव
चुपके से
कब आती हैं
आँगन में कैसे पता चले ?
मन के भाव
चुपके से
बदल जाते हैं ।
एक स्त्री के लिए
माँ बनना हमेशा ही
रहता है एक सम्पूर्ण सपना !!!
फिर भी क्यों पुरूष
अपनी चाह को मिटा कर,
मिटा देना चाहता है एक
आती हुई जिंदगी को !!
सिर्फ़ यह कहकर
की कौन संभालेगा
ये ज़िम्मेदारी
एक स्त्री के लिए
माँ बनना हमेशा ही
रहता है एक सम्पूर्ण सपना !!!
फिर भी क्यों पुरूष
अपनी चाह को मिटा कर,
मिटा देना चाहता है एक
आती हुई जिंदगी को !!
सिर्फ़ यह कहकर
की कौन संभालेगा
ये ज़िम्मेदारी
देखो न कितनी मंहगाई भी है ?
कैसे चलेगा खर्च और भी
न जाने क्या क्या बातें ??
पर भूल जाता है
वो सब जब फिर से अकेला होता है
उसके साथ
कोई मंहगाई कोई भी ज़िम्मेदारी
उसे रोक नहीं पाती
फिर से एक नयी ज़िन्दगी
की उम्मीदें मार डालने में ???
वह तो बस सिसक सकती है
क्योंकि उसके संस्कार चुप कर देते है उसे
पर क्या कोई संस्कार होते हैं पुरुष के भी ?
Sunday 2 August 2009
मजबूरी
फिर से आता
राखी का त्यौहार
उसकी तो सोच ही
बदल जाती ।
कुछ समझ नहीं पाता
कि कैसे समझाए
अपनी बहन को जो
फिर से करेगी इंतज़ार
उसकी कलाई का
बुनेगी सपने अरसे बाद राखी बाँधने के॥
जब भी देखता है वह अपनी
बचत को जो बहुत कम है
सोच लेता है कि कह दूँगा
मिल पा रही है अभी छुट्टी नहीं
फिर कोशिश करूंगा.......
आख़िर पिछले कई सालों से
यही झूठ बोलकर ही तो
समझाता रहा हूँ उसे
और रोता रहा हूँ
बहुत देर तक उससे बात करने के बाद....
क्या इसी को कहते हैं
मजबूरी ?
राखी का त्यौहार
उसकी तो सोच ही
बदल जाती ।
कुछ समझ नहीं पाता
कि कैसे समझाए
अपनी बहन को जो
फिर से करेगी इंतज़ार
उसकी कलाई का
बुनेगी सपने अरसे बाद राखी बाँधने के॥
जब भी देखता है वह अपनी
बचत को जो बहुत कम है
सोच लेता है कि कह दूँगा
मिल पा रही है अभी छुट्टी नहीं
फिर कोशिश करूंगा.......
आख़िर पिछले कई सालों से
यही झूठ बोलकर ही तो
समझाता रहा हूँ उसे
और रोता रहा हूँ
बहुत देर तक उससे बात करने के बाद....
क्या इसी को कहते हैं
मजबूरी ?
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