आज फिर
आ गई है नई किश्त
रोज़गार गारंटी योजना की,
गाँव में आपा -धापी के बीच
बन रही हैं योजनायें
इसको खर्च करने की.
आख़िर सभी के लिए ही तो है
यह अनूठी योजना।
गाँव के प्रधान-पति, ग्राम सेवक
ग्राम विकास अधिकारी,
खंड विकास अधिकारी भी तो हैं
आख़िर रोज़गार तो उन्हें भी तो देना ही है।
सरकार दिल्ली से लखनऊ तक
रोज़ बनाती है नई योजना विकास की
और यहाँ चिंता है अपने व्यक्तिगत विकास की
फिर भी कोई कुछ भी कहे
देश के कर्मठ लोग समर्पित हैं
देश के संसाधनों को रोकने में
आम जनता तक पहुँचने में
पंचायती राज व्यवस्था में भी ?
मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Friday 24 July 2009
Friday 17 July 2009
वह हमारा प्यारा बादल............
फिर से दिखा
क्या तुमने देखा ?
अब क्या करें
पहले तो बहुत आसानी
से ही दिख जाया
करता था.....
यह तो हम मनुष्य ही हैं
जिन्होंने छीन लिया
उसका प्राकृतिक आवरण
तभी तो आज वह
पता नहीं कहाँ लुप्त हो गया ?
काला-भूरा, श्याम श्वेत
और भी न जाने कितने
अवर्णित रंग लेकर
इन्द्रधनुष को अपने
आँचल पर फैलाये.....
आधुनिकता की दौड़ में
दिखावे की स्पर्धा में ..
कहीं हमने ही तो उसे
भगा नहीं दिया अपने से दूर
फिर भी पता नहीं
कहाँ चला गया
वह हमारा प्यारा बादल......
क्या तुमने देखा ?
अब क्या करें
पहले तो बहुत आसानी
से ही दिख जाया
करता था.....
यह तो हम मनुष्य ही हैं
जिन्होंने छीन लिया
उसका प्राकृतिक आवरण
तभी तो आज वह
पता नहीं कहाँ लुप्त हो गया ?
काला-भूरा, श्याम श्वेत
और भी न जाने कितने
अवर्णित रंग लेकर
इन्द्रधनुष को अपने
आँचल पर फैलाये.....
आधुनिकता की दौड़ में
दिखावे की स्पर्धा में ..
कहीं हमने ही तो उसे
भगा नहीं दिया अपने से दूर
फिर भी पता नहीं
कहाँ चला गया
वह हमारा प्यारा बादल......
Friday 10 July 2009
बजट पर कुछ पंक्तियाँ
गाँवों में अब हो रहा पूँजी का हुड दंग
सारे हिल-मिल लूटते करदाता है तंग..
करदाता है तंग करें अब क्या और कैसे
मन को मोहे आज प्रणब की खूब लपूसें..
काले गोरे कोट पर हो गयी कर की मार
सस्ती होती आज फिर मंहगी मंहगी कार
मिला बहुत सा प्यार मिलेगा अब रोजगार
मिलकर खाएं आज खोदते सड़कें यार
सारे हिल-मिल लूटते करदाता है तंग..
करदाता है तंग करें अब क्या और कैसे
मन को मोहे आज प्रणब की खूब लपूसें..
काले गोरे कोट पर हो गयी कर की मार
सस्ती होती आज फिर मंहगी मंहगी कार
मिला बहुत सा प्यार मिलेगा अब रोजगार
मिलकर खाएं आज खोदते सड़कें यार
Wednesday 8 July 2009
सावन के बहाने
फिर से लग गया
सावन का महीना,
मन में झूले
पुरवा हवा
रिमझिम बरसात
की याद...
उतरती हुई जुर्राब की तरह
उलटती चली गई।
फिर से सोच कि
काश ! बरस जाते बदरा
एक समान पूरी धरती पर
माँ के निश्छल प्यार के समान..
कहीं बाढ़ कहीं सूखा
क्यों है अब स्थायी भाव ?
भीग जाता प्रेमी का मन
किसान का खेत
अर्थ व्यवस्था में होते नव अंकुरण....
पर किसी का क्या दोष ?
हम ही नहीं रख पाए प्रकृति की थाती
को संजो कर,
लूट लिया जो मिल गया
बिना किसी मोल
अब तो चुकाना ही होगा ना
जीवन में यह क़र्ज़
हर बार नाप-तोल ....
सावन का महीना,
मन में झूले
पुरवा हवा
रिमझिम बरसात
की याद...
उतरती हुई जुर्राब की तरह
उलटती चली गई।
फिर से सोच कि
काश ! बरस जाते बदरा
एक समान पूरी धरती पर
माँ के निश्छल प्यार के समान..
कहीं बाढ़ कहीं सूखा
क्यों है अब स्थायी भाव ?
भीग जाता प्रेमी का मन
किसान का खेत
अर्थ व्यवस्था में होते नव अंकुरण....
पर किसी का क्या दोष ?
हम ही नहीं रख पाए प्रकृति की थाती
को संजो कर,
लूट लिया जो मिल गया
बिना किसी मोल
अब तो चुकाना ही होगा ना
जीवन में यह क़र्ज़
हर बार नाप-तोल ....
Wednesday 1 July 2009
चाह...
क्या है
अनंत पार जिससे जाना हो
क्या है
अपार समेट जिसे लाना हो
क्या है
अनंत पार जिससे जाना हो
क्या है
अपार समेट जिसे लाना हो
क्या है
अखंड जोड़ जिसे देना हो
खोल के
मन की ग्रंथि...
जब देखा तो
चाह के आगे
अनचाही प्यास ...
फिर से,
चरी हुई दूब की
तरह जीने
का प्रयास करती
प्रकाश के पंख
पर चढ़
खोल के
मन की ग्रंथि...
जब देखा तो
चाह के आगे
अनचाही प्यास ...
फिर से,
चरी हुई दूब की
तरह जीने
का प्रयास करती
प्रकाश के पंख
पर चढ़
फिर से
चरे जाने के इंतज़ार में..........
चरे जाने के इंतज़ार में..........
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