Sunday 20 December 2009

तुम्हीं हो ...

मत पूछो मेरे दिल से, मेरे दिल की चाह को।
पहली से आख़िरी सभी चाहत में तुम्हीं हो ॥

हो चाहें जितनी दुनिया, हों चाहे राहें कितनी ?
शुरुआत से अभी भी मेरी ज़न्नत में तुम्हीं हो।

हर एक की दुआ है कि, मिल जाये साथ तेरा ।
उठते हुए हर हाथ की मन्नत में तुम्हीं हो ॥

कुछ लोग जी गए थे, किसी और राह में ।
इस जिंदगी की राह और राहत में तुम्हीं हो॥


Friday 4 December 2009

मन की चाहत

जब जब याद तुम्हारी आई
मन के पंछी मुक्त हुए,
फिर से एक तमन्ना झांकी
दिल के सूने कोटर से.

देख तुम्हारी फिर तस्वीरें
दिल में आहट होती है,
कोयल जैसे निकल रही है
फिर बसंत के आने में.

तेरी चिट्ठी हाथ में आई
पंख लगे अरमानों को,
भीगे सूखे फिर से अक्षर
मन का सावन बरसा जब.

जीने के तो लाख बहाने
फिर भी मन को भाएं ना,
सात जनम फिर से लगते हैं
साथी सच्चा पाने में.

Thursday 12 November 2009

मेरे अरमां.....

मेरे अरमां मचल रहे हैं,
तेरे अब मचलेंगें कब ?
थोड़ी मेहर जो रब की हो तो,
पूरे होंगे अबकी सब....

थोड़ी झिझक बची है मुझमें,
थोड़ी तुझमें है बाकी.
तू जो हाथ थाम ले मेरा,
चाँद के पार चलेंगें हम....

घने कुहासे की चादर में
दिल ने फिर अंगडाई ली है.
याद वही फिर से आता है,
तेरी आहट मिलती जब....

तेरी भोली मुस्कानों में,
दिल के अरमां पलते हैं.
डूब के तेरी आँखों में अब,
जीवन फिर से लेंगें हम....

पल पल जीना मुश्किल है जब,
तू है मुझसे दूर कहीं .
आ के अपना हाथ बढ़ा दे
वरना डूब रहे हैं हम...........

Monday 26 October 2009

तुमको आते देखा जब...

मौसम में फिर प्यार घुला है,
जीवन में बदला है सब ।
दिल ने फिर अंगडाई ली है
तुमको आते देखा जब।।

हरी घास पर ओस की बूँदें,
बैठी रहती धूप चढ़े तक।
हौले हौले भाप हो गयीं
तुमको आते देखा जब॥

इंतज़ार में अब तक तेरे,
घना कुहासा बढ़ता है।
सूरज फिर से निकल रहा है
तुमको आते देखा जब॥

थमी थमी सी बोझिल शामें
रुक रुक कर खामोश हुयीं।
जीवन चलने लगा नसों में
तुमको आते देखा जब॥

नर्म हथेली की गुन-गुन में,
धीमी आंच निरंतर रहती।
माथे पर उगती कुछ बूँदें
तुमको आते देखा जब॥

देख ऊंचाई चट्टानों की
फौलादी फिर हुए हौसले।
मन ने फिर संकल्प लिया है
तुमको आते देखा जब....

Monday 12 October 2009

टुकड़े टुकड़े...

टकराकर वापस आती
प्रेम की सुखद अनुभूति
जो हो जाती है कभी
टुकड़े टुकड़े.....
कर जाती है मन को
अतृप्त गहरे तक व्यथित
जैसे हो चमन
उजड़े उजड़े......
बुन जाती है जीवन में
एक नया ताना बाना
पर ज़िन्दगी कटती है
सिकुड़े सिकुड़े.....
सुख की एक नई चाह में
अनचाहे में ही वह
बो जाती है रोज़ नए
झगड़े झगड़े......
बेचैन कर जो कुछ भी
कर नहीं सकती
सुना जाती है नए
दुखड़े दुखड़े...
दिल डूब रहा हो जब
यादों के अनंत भंवर में
दिखा जाती है वह प्यारे
मुखड़े मुखड़े....

Wednesday 9 September 2009

जिंदगी

दिल खो गया है दिल का, या ये मेरी खता है.
मेरे अजीज़ खास,   परेशान बहुत हैं..
उनके करीब होने से बदल जाती है दुनिया,
मेरी जिंदगी के सच से वो अनजान बहुत हैं..
हों राहें कितनी मुश्किल या दुश्वार मंजिलें ,
वो हमसफ़र जो हों तो सब आसान बहुत है..
मैं बच गया हूँ कैसे इन तूफानी राहों में, 
ये देख के सब लोग अब हैरान बहुत हैं..
वो और रहे होंगें जिन्हें नाम की थी चाह,  
मेरे खुदा के साथ मैं गुमनाम बहुत हूँ...

Saturday 29 August 2009

१०० दिन का काम

गाँवों में अब हो रहा १०० दिन का व्यापार,
नेता बाबू लूटते जनता की सरकार ॥
मीरा जी ने कह दिया हो चाहे तकरार,
हर सांसद को चाहिए १०० दिन का रोज़गार।।
१०० दिन का रोज़गार मचाएं जितना हल्ला,
खाने को तो मिले मलाई और रसगुल्ला ।।

Thursday 27 August 2009

क्यों ?

खुशियाँ
कब आती हैं
आँगन में कैसे पता चले ?
मन के भाव
चुपके से
बदल जाते हैं
एक स्त्री के लिए
माँ बनना हमेशा ही
रहता है एक सम्पूर्ण सपना !!!
फिर भी क्यों पुरूष
अपनी चाह को मिटा कर,
मिटा देना चाहता है एक
आती हुई जिंदगी को !!
सिर्फ़ यह कहकर
की कौन संभालेगा
ये ज़िम्मेदारी
देखो न कितनी मंहगाई भी है ?
कैसे चलेगा खर्च और भी
न जाने क्या क्या बातें ??
पर भूल जाता है
वो सब जब फिर से अकेला होता है
उसके साथ
कोई मंहगाई कोई भी ज़िम्मेदारी
उसे रोक नहीं पाती
फिर से एक नयी ज़िन्दगी
की उम्मीदें मार डालने में ???
वह तो बस सिसक सकती है
क्योंकि उसके संस्कार चुप कर देते है उसे
पर क्या कोई संस्कार होते हैं पुरुष के भी ?

Sunday 2 August 2009

मजबूरी

फिर से आता
राखी का त्यौहार
उसकी तो सोच ही
बदल जाती ।
कुछ समझ नहीं पाता
कि कैसे समझाए
अपनी बहन को जो
फिर से करेगी इंतज़ार
उसकी कलाई का
बुनेगी सपने अरसे बाद राखी बाँधने के॥
जब भी देखता है वह अपनी
बचत को जो बहुत कम है
सोच लेता है कि कह दूँगा
मिल पा रही है अभी छुट्टी नहीं
फिर कोशिश करूंगा.......
आख़िर पिछले कई सालों से
यही झूठ बोलकर ही तो
समझाता रहा हूँ उसे
और रोता रहा हूँ
बहुत देर तक उससे बात करने के बाद....
क्या इसी को कहते हैं
मजबूरी ?

Friday 24 July 2009

किसका कार्य ?

आज फिर
आ गई है नई किश्त
रोज़गार गारंटी योजना की,
गाँव में आपा -धापी के बीच
बन रही हैं योजनायें
इसको खर्च करने की.
आख़िर सभी के लिए ही तो है
यह अनूठी योजना।
गाँव के प्रधान-पति, ग्राम सेवक
ग्राम विकास अधिकारी,
खंड विकास अधिकारी भी तो हैं
आख़िर रोज़गार तो उन्हें भी तो देना ही है।
सरकार दिल्ली से लखनऊ तक
रोज़ बनाती है नई योजना विकास की
और यहाँ चिंता है अपने व्यक्तिगत विकास की
फिर भी कोई कुछ भी कहे
देश के कर्मठ लोग समर्पित हैं
देश के संसाधनों को रोकने में
आम जनता तक पहुँचने में
पंचायती राज व्यवस्था में भी ?

Friday 17 July 2009

वह हमारा प्यारा बादल............

फिर से दिखा
क्या तुमने देखा ?
अब क्या करें
पहले तो बहुत आसानी
से ही दिख जाया
करता था.....
यह तो हम मनुष्य ही हैं
जिन्होंने छीन लिया
उसका प्राकृतिक आवरण
तभी तो आज वह
पता नहीं कहाँ लुप्त हो गया ?
काला-भूरा, श्याम श्वेत
और भी न जाने कितने
अवर्णित रंग लेकर
इन्द्रधनुष को अपने
आँचल पर फैलाये.....
आधुनिकता की दौड़ में
दिखावे की स्पर्धा में ..
कहीं हमने ही तो उसे
भगा नहीं दिया अपने से दूर
फिर भी पता नहीं
कहाँ चला गया
वह हमारा प्यारा बादल......

Friday 10 July 2009

बजट पर कुछ पंक्तियाँ

गाँवों में अब हो रहा पूँजी का हुड दंग
सारे हिल-मिल लूटते करदाता है तंग..
करदाता है तंग करें अब क्या और कैसे
मन को मोहे आज प्रणब की खूब लपूसें..
काले गोरे कोट पर हो गयी कर की मार
सस्ती होती आज फिर मंहगी मंहगी कार
मिला बहुत सा प्यार मिलेगा अब रोजगार
मिलकर खाएं आज खोदते सड़कें यार

Wednesday 8 July 2009

सावन के बहाने

फिर से लग गया
सावन का महीना,
मन में झूले
पुरवा हवा
रिमझिम बरसात
की याद...
उतरती हुई जुर्राब की तरह
उलटती चली गई।
फिर से सोच कि
काश ! बरस जाते बदरा
एक समान पूरी धरती पर
माँ के निश्छल प्यार के समान..
कहीं बाढ़ कहीं सूखा
क्यों है अब स्थायी भाव ?
भीग जाता प्रेमी का मन
किसान का खेत
अर्थ व्यवस्था में होते नव अंकुरण....
पर किसी का क्या दोष ?
हम ही नहीं रख पाए प्रकृति की थाती
को संजो कर,
लूट लिया जो मिल गया
बिना किसी मोल
अब तो चुकाना ही होगा ना
जीवन में यह क़र्ज़
हर बार नाप-तोल ....

Wednesday 1 July 2009

चाह...

क्या है
अनंत पार जिससे जाना हो
क्या है
अपार समेट जिसे लाना हो
क्या है
अखंड जोड़ जिसे देना हो
खोल के
मन की ग्रंथि...
जब देखा तो
चाह के आगे
अनचाही प्यास ...
फिर से,
चरी हुई दूब की
तरह जीने
का प्रयास करती
प्रकाश के पंख
पर चढ़
फिर से
चरे जाने के इंतज़ार में..........

Saturday 27 June 2009

क्योंकि वह तो है एक शिक्षिका

लम्बी छुट्टी के
बाद फिर से खुलेंगें स्कूल,
किस तरह से फिर से वह
बन जायेगी एक चकरघिन्नी,
सुबह से शुरू होने वाला दिन,
कब रात में बदल जाता है
कुछ पता ही नहीं चलता ?
क्योंकि वह तो है एक शिक्षिका ?
बच्चे का बस्ता,
तो पति का नाश्ता
अपनी क्लास के लेसन प्लान
तो दूसरी की कॉपी जांचना,
बैंक जाने के लिए हाफ डे
मांगने की हिम्मत जुटाना ?
यह सब ही तो रोज़ का है
क्योंकि वह तो है एक शिक्षिका ?
पानी की पतली धार में
परदे और चादर धोना,
उमस भरी गर्मी में अपने
सुख के लिए खाना बनाना,
क्योंकि वही तो है जिसका
है यह घर ?
पति ने तो दे दिए बच्चे
जो केवल उसके ही हैं अब,
ख़ुद बच्चे बन रिमोट
के लिए लड़ते हैं बच्चों से...
स्कूल के झगड़े निपटाना
तो आसान है पर यहाँ तो
दोनों ही अपने हैं,
और एक के पक्ष में होना
दूसरे को अपने खिलाफ करना है ?
बस शोर से बचने के लिए
छौंक में थोड़ा सा पानी डाल कर,
ख़ुद को दूर कर लिया उसने
उस झगड़े के बढ़ते हुए शोर से
क्योंकि वह तो है एक शिक्षिका ?
बच्चा सोना नहीं चाहता पर
उसे तो चाहे अनचाहे
अभी है एक और काम
अपने पत्नी होने का धर्म
निभाना है
और उसे निभाने के लिए
उसकी सहमति की
आवश्यकता नहीं होती
क्योंकि वह तो है एक शिक्षिका


Friday 19 June 2009

क्यों पुरूष क्यों ?

क्यों कोई
कभी नहीं देखता कि
नारी के और भी
बहुत सारे रूप हैं ?
क्यों एक पुरूष
सदैव ही उसे
भोग लेना चाहता है
भले ही उसकी
सहमति हो या न ?
क्यों हमेशा एक ही
नज़र से देखता है
वह नारी के अन्य
रूपों को भूलकर
क्यों नही दे पाता
उसे स्त्रियोचित
सम्मान जिसकी
हक़दार है वह ?
क्यों जाग जाता है
पुरूष का पुरुषत्व
अबला नारी के सामने
जो समर्पित है उसको ?
क्यों पुरूष
कभी नहीं देखता नारी
की पूर्णता, त्याग ,धैर्य
उसका मान सम्मान
अरे मनुज कभी तो सोचो उस
नारी के दर्द को
जो हर दर्द में भी रखती है
केवल और सदैव ही
तुम्हारी खुशी की थोड़ी सी चाह ?

Friday 12 June 2009

आओ ना....

आओ ना
फिर से मिलकर गायें
जीवन का वो अद्भुद गीत ॥
आओ ना ....
टूटी साँसों में, विषमता की लौ से
जलते प्राणी के मन में
फिर से जोड़ लें जीवन संगीत
आओ ना ........
बिखरते आसमान से टपकती
किसी व्यक्ति की आशाएं,
झोली में समेट लौटा दें उसे
आओ ना ......
दूर देश गए बेटे की ख़बर
एक झोंका बन कर आज
उसकी माँ तक पहुँचा दें
आओ ना....
सपने देख कर उन्हें
टूटने से पहले ही सहेज कर
सच कर देने को अब
आओ ना....
देश को डस रहे विषधरों से
बचाने सब लोगों को आज
अमृत पान कराने को अब तो
आओ ना....

Thursday 4 June 2009

मायके जाती लड़कियां..

उम्र चाहे जितनी भी हो
परिवार चाहे कैसा भी हो
पर सब एक जैसी हो जाती हैं
जब मायके जाती लड़कियां।
भूख नहीं लगती,
प्यास नहीं सताती,
बस अपने घर की
चौखट जो एक झटके में,
परायी हो गई थी कभी
फिर से याद आती है।
पापा का चश्मा,
माँ के घुटने का दर्द,
दादी के उलाहने,
बाबा का दुलार,
भाई-बहन के झगड़े,
सहेलियों की अठखेलियाँ,
सब कुछ तो याद करती हैं।
मायके जाती लड़कियां .....
पति के खाने की चिंता,
बच्चों की पढ़ाई,
सासू माँ का कीर्तन,
बाबूजी का स्नेह,
ननद के उलाहने,
देवर की छेड़,
कैसे भूल जाए ?
मायके जाती लड़कियां.......
तभी तो मायके जाकर भी
आधी तो अपने घर
में ही रह जाती हैं।
हर एक की ज़रूरत
उनकी हसरत....
सभी का दारोमदार तो उन
पर ही तो है
बस इसीलिए शायद बदल कर भी
पहले जैसी ही रह जाती हैं
मायके जाती लड़कियां.......

Tuesday 2 June 2009

एक बार फिर से खोना...

ख़ुद को कोई भूले कैसे, यक्ष प्रश्न है यह ।
फिर भी मिलकर ख़ुद को खोजें मूर्ख सयाने सब ॥
जीवन में ठोकर कितनी हैं दो रोटी की आहट में।
फिर भी हम सब ख़ुद को खोजें जाने किस चाहत में॥
अपनों ने ही ख़ुद को लूटा, जीने की है इच्छा कम।
साथ दे रहे अपने दुश्मन मूक देखता है यह मन॥
जब भी खोया अपना प्रियतम दर्द खरीदा दिल में।
कितना झूठा दर्द लगे है और व्यर्थ यह जीवन॥
टूट रही हैं खिंचती सांसें, रुकता है स्पंदन ।
फिर भी आज सभी जिंदा हैं अपने अपने तन में॥
खोना पाना चलता रहता है मनुष्य के जीवन में
खोज रहे हैं ख़ुद को अब तक पाने की चाहत में...

Thursday 21 May 2009

ख़ुद को भूल जाना

कोई कैसे ख़ुद को
भूल जाता है ?
यह अपने आप में
ही रहस्य है॥
जिंदगी की ठोकर,
रोटी की कश्मकश,
अपनों की उपेक्षा,
जीने की कम इच्छा,
दोस्तों की बेवफाई,
दुश्मनों का साथ देना,
प्यार खोकर,
दर्द खरीदना,
खरीदी चीज़ें बेकार,
लगना।
आख़िर किस तरह,
से कोई फिर भी
ख़ुद को कैसे याद
रख सकता है
बस उस स्थित
को ही तो
हम कह सकते है,
ख़ुद को भूल जाना .......

Tuesday 28 April 2009

बड़े होने का फर्क

वह बड़ा हो रहा था
उसे पता नहीं था की कब
कैसे क्या करना है ?
पर वो बड़ी हो रही थी और उसे पता था कि
अब सबसे पहले
चुन्नी ही तो संभालनी है
माँ दीदी से कहा करती थी
अब तू बड़ी हो गई है
अपना भी ध्यान रखा कर .....
वह बड़ा होता है तो उसका
ध्यान तो सिर्फ़ होता है
किसी सरकती हुई चुन्नी पर ही तो
जाति धर्म आयु का भेद भूल कर
वह बन जाता है
एक नेता की तरह
निरपेक्ष
भूखा भेड़िया ?

Sunday 26 April 2009

खोना तुमको

क्यों नहीं
वो समझ पाती कि
वो ही तो सहारा है
सारे जहाँ में॥
फिर भी क्यों छोड़ देती है
अकेला ही अंधेरे में
ख़ुद को खोजने के लिए ?
देख लो कहीं
मैं खोज ही न पाऊँ और
तुम अंधेरे में
अनंत रूप से
जुड़ जाओ और
छोड़ जाओ मेरा साथ
सदैव के लिए ।
डर तो लगता है पर
तुम्हारा विश्वाश
संबल देता है कि
मैं हूँ तुम डटे रहो
जीवन के अनेक
अंधकार के अंध तम में ...

Wednesday 1 April 2009

दोहे

संजू भइया रह गए, उल्टा हो गया केस,
एक भूल में हो गया कैसे छिपता फेस ॥

Sunday 15 March 2009

चुनावी दोहे

कल तक जिन नोटों पर, अपना था अधिकार ! 
अब पड़ती हैं उन पर, बस चुनाव की मार !!  
खाते पीते रोज़ थे, अपने राम सुजान !
गोपाला के भजन से, भूखे हैं रमजान !!  
पूडी सब्जी मिल रही, कल तक सबको खूब ! 
लैया चना खिला रहे, गधे खा रहे दूब !!  
माया के कल्याण में, मिश्रा दौडें आज ! 
हाथी के संग्राम में, अमर हो रहे काज !!

Thursday 5 March 2009

चुनाव आए

फिर से आये धूल फांकने नेता अपने
फिर से सेवक बने कभी जो थे बेगाने
नत-मस्तक हो जाये अभी ये प्यारे नेता
जन सेवक बन हैं छिपते ये न्यारे नेता
छिपते ये न्यारे नेता सड़क पर खाक छानते
इक दूजे पे थोक भाव में कीचड़ फेंकें
कांव कांव और टर्र टर्र अब खूब मचाएँ
है चुनाव का समय आज अब पाँव दबाएँ


Monday 2 March 2009

चुनावी चक चक

फिर से घोषित हो गए देखें चुनाव की धार
शोषक शोषित हो गए सुन चुनाव की मार
आज झुके हैं नेता गण जनता का दरबार
चिल्लाकर अब फिर करें अपना खूब प्रचार
अपना खूब प्रचार मचाये हल्ला गुल्ला
सर पे आज उठाये देखो आज मोहल्ला।
है डंडा आयोग का छिप कर शोर मचाओ
और विरोधी के सर पर नाचो और नचाओ

Wednesday 25 February 2009

सुखराम या रामसुख

कल तक गद्दे में थे नोट
आज लगी है दिल पे चोट
नेता उसको कहते हैं जो
बेशर्मी से मांगे वोट।
दुःख में नींद नहीं आएगी
जेल में सांसे फूल जाएँगी
राम राम अब जप कर काटें
सुख को जाना होगा भूल...

Tuesday 17 February 2009

बिगड़ी फिजां

खुल के बोली फिजां चाँद पर कीचड़ फेंका,
भागे हैं अब चन्द्र छोड़ के आज मेनका.
उल्टा होता दांव लगाया था जो चौका,
नियति ने अब बना दिया है ख़ुद को छक्का.
लगी ७६ दफा बेचारे किससे रोएँ,
पापी प्रेम के साथ आज फिर तनहा रोएँ.

Friday 6 February 2009

अस्पताल..खुलेगा

एक और अस्पताल बनेगा
पर गरीब तो बिना इलाज ही
बिना चिकित्सक
तन्हाई में ही मरेगा।
राशन के तेल से तो जल
कर मर नहीं सकता
क्योंकि वो उसकी पहुँच से
बाहर है।
और चुनाव के अलावा उसने
आज तक नेता नामक
प्राणी नहीं देखा।
चाहे जिस दल की सरकार हो
उसके सरकार तो गाँव के ही हैं
माई बाप और भगवान् सब
वही तो हैं..
उसके लिए तो यह ख़बर
भी नहीं है कि कोई
उसके लिए ही यह
बना रहा है॥
फिर भी किसी को तो लाभ
मिलेगा
कोई तो कमीशन खा सकेगा
अस्पताल के निर्माण में
चिकित्सकों की नियुक्ति में
दवाओं की खरीद में और फर्जी
परिवार नियोजन में।
चलो फिर भी एक अस्पताल तो
खुल ही रहा है
किसी का पेट तो भरेगा
चाहे किसी नेता का ही
सही.

Monday 26 January 2009

हमने यह गणतंत्र मनाया.


देश प्रेम में अलख जगाकर,
अमर शहीदों की यादों में. 
झंडे नीचे शपथ उठाकर 
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
फिर से हमने जड़ें सींचकर, 
अपने खून पसीने से, 
नई पौध को आगे लाकर, 
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
झूठे वादे फिर से सुनकर, 
रटी रटाई भाषा में, 
फिर से सपने नए देखकर, 
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
आशाओं की आस दिखाकर, 
भूखे बच्चों की आँखों में  
खूब मिठाई फिर से खाकर,  
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
सपने टूटे फिर टकराकर, 
पिसते भारत के मन में, 
झूठी क़समें फिर से खाकर, 
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
कुछ की जान हुई न्योछावर, 
कुछ कमरों में बैठे हैं 
अपना भ्रष्टाचार दिखा कर, 
हमने यह गणतंत्र मनाया. 
चाँद सतह पर आज पहुंचकर, 
देश जगा है अपनी   रौ में  
मेधा की अब ज्योति जलाकर, 
हमने यह गणतंत्र मनाया.`

Saturday 17 January 2009

वेदना से वेदांत










क्यों होगी थकान अब मुझको, 
जीवन ही संगीत बन गया. 
कविता फिर से प्रेम रूप में  
आयी इस एकाकी मन में. 
नींद खुली तो वंशी की धुन, 
पीत साँझ की मिलती लय में 
ढलती हैं सूरज की किरणें  
फिर से उगने के प्रण में. 
वन पथ की उदास रातें हैं, 
छाया की फिर से तलाश है 
चंदन वन की चंद सुगंधें, 
महक रही हैं अब तन में. 
पंछी रात समझ घर आए 
सकुचाये स्वर फिर मुस्काए 
दिल तो याद किया करता है
स्वप्न पुराने ले आंखों में. 
आंसू सूख बन गए मोती, 
भरी नींद में खुली पलक पर  
पूजन की ध्वनि पुनः सुनी है 
दो झांझर से इक धुन में.

Friday 16 January 2009

सर्दी आई सर्दी आई....

थर थर काँपे सारे बच्चे,  
पहने नहीं जो पूरे कपड़े, 
मुँह से भाप निकालें भाई  
सर्दी आई सर्दी आई.... 
गज़क मिठाई लड्डू खाएँ,  
मूँगफली का मज़ा उठायें,  
खाएं रेवड़ी और मिठाई  
सर्दी आई सर्दी आई......  
बाहर धूप नहीं है निकली,  
कोहरे में है हालत पतली, 
सर तक ढापें आज रजाई  
सर्दी आई सर्दी आई........  
जब भी हम बैठे पढ़ने को,  
मन करता है फिर सोने को,  
कम्बल में जब गर्मी आई 
सर्दी आई सर्दी आई.......  
सुबह सवेरे उठा करेंगें, 
खूब पढ़ाई किया करेंगें,  
कुर्सी मेज़ अभी लगवाई 
सर्दी आई सर्दी आई.......

Thursday 8 January 2009

ये नेता

जान गवां कर लाठी खाकर
देश किया आजाद जिन्होंने 
आज वही फिर बने निशाना 
रोते नेता आज अभी तक  
आगे बढ़कर उनको कोसें 
बातों में अब क्या है दम  
है समाज अब समता मूलक  
कोई किसी से कैसे कम ?