वह बड़ा हो रहा था
उसे पता नहीं था की कब
कैसे क्या करना है ?
पर वो बड़ी हो रही थी और उसे पता था कि
अब सबसे पहले
चुन्नी ही तो संभालनी है
माँ दीदी से कहा करती थी
अब तू बड़ी हो गई है
अपना भी ध्यान रखा कर .....
वह बड़ा होता है तो उसका
ध्यान तो सिर्फ़ होता है
किसी सरकती हुई चुन्नी पर ही तो
जाति धर्म आयु का भेद भूल कर
वह बन जाता है
एक नेता की तरह
निरपेक्ष
भूखा भेड़िया ?
मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Tuesday 28 April 2009
Sunday 26 April 2009
खोना तुमको
क्यों नहीं
वो समझ पाती कि
वो ही तो सहारा है
सारे जहाँ में॥
फिर भी क्यों छोड़ देती है
अकेला ही अंधेरे में
ख़ुद को खोजने के लिए ?
देख लो कहीं
मैं खोज ही न पाऊँ और
तुम अंधेरे में
अनंत रूप से
जुड़ जाओ और
छोड़ जाओ मेरा साथ
सदैव के लिए ।
डर तो लगता है पर
तुम्हारा विश्वाश
संबल देता है कि
मैं हूँ तुम डटे रहो
जीवन के अनेक
अंधकार के अंध तम में ...
वो समझ पाती कि
वो ही तो सहारा है
सारे जहाँ में॥
फिर भी क्यों छोड़ देती है
अकेला ही अंधेरे में
ख़ुद को खोजने के लिए ?
देख लो कहीं
मैं खोज ही न पाऊँ और
तुम अंधेरे में
अनंत रूप से
जुड़ जाओ और
छोड़ जाओ मेरा साथ
सदैव के लिए ।
डर तो लगता है पर
तुम्हारा विश्वाश
संबल देता है कि
मैं हूँ तुम डटे रहो
जीवन के अनेक
अंधकार के अंध तम में ...
Wednesday 1 April 2009
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