हे ! रूद्र रूप
हे ! महारुद्र,
ये रौद्र रूप
तुम मत धारो ...
तुम विष को धारण
करते हो,
अपने जन को
मत संहारो ....
तुम भोले हो
तुम अविनाशी,
हो शांत
नहीं अब नाश करो ....
तुम ज्ञानी हो
सर्वज्ञ तुम्हीं,
हम अज्ञानी
मत क्रोध करो ....
बद्री विशाल !
तुम हो विशाल,
भोले के तांडव
को रोको ....
हम तो सेवक
तेरे केदार,
बस अब
त्रिनेत्र को बंद करो ....
हे ! विश्वनाथ अब
स्थिर होकर,
प्रभु "आशुतोष"
का रूप धरो ........