Monday 31 December 2012

नया वर्ष ?

क्या उपलब्धि है हमारी
क्या ख़ास किया हमने इस वर्ष ?
क्या करने की अभिलाषा है
हम सब की अगले वर्ष ?
ऐसे ही पन्ने पलटते जायेंगें
कैलेंडर्स के ....
हम गिनते रह जायेंगें 13 /14 / 15
और भी न जाने कितने
नए वर्ष ऐसे ही आते जायेंगें ?
क्या कभी हम पुरुषत्व के उस
दल दल से बाहर आकर
समझ सकेंगें
नारी के कोमल मन को ?
दे सकेंगें उसको वह सम्मान
जिसकी हक़दार होती है
वह माँ की कोख़ से ...
फिर भी क्यों मनाएं एक
और दिखावटी नया वर्ष ?
जब हम आज भी जी रहे हैं
उसी युगों पुरानी मानसिकता में
जो नहीं बदल सकती या
बदलना ही नहीं चाहती .....

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