मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Saturday, 29 December 2012
Wednesday, 21 March 2012
सब
वो आरज़ू भी जुस्तजू भी और सब भी हैं
मेरे नहीं तो खुद कहो वो और किसके हैं ?
पाया उन्हें जो दिल से तो फिर चाह न रही
उनको बना के जान अब जिंदा हुआ हूँ मैं........
मेरे नहीं तो खुद कहो वो और किसके हैं ?
पाया उन्हें जो दिल से तो फिर चाह न रही
उनको बना के जान अब जिंदा हुआ हूँ मैं........
Wednesday, 13 July 2011
दुनियादारी
दर्द सीने का अभी, चेहरे पे आ जाता है !
वक्त के साथ हुनर, उसमें भी आ जायेगा !!
जो बस सबकी ख़ुशी, के लिए ही जीता है !
मौत के बाद वही, सबको रुला जायेगा !!
साथ रहने की क़सम, रात दिन जो खाता है !
क्या पता एक रोज़, वो भी बदल जायेगा !!
छिपकर के किसी रोज़, कहीं दांव खेलता है !
जीती बाज़ी कोई वो, फिर से हार जायेगा !
आज वो फिर से मुसीबत में घिरा लगता है !
वाकई कौन सगा है, पता चल जायेगा... !!
वक्त के साथ हुनर, उसमें भी आ जायेगा !!
जो बस सबकी ख़ुशी, के लिए ही जीता है !
मौत के बाद वही, सबको रुला जायेगा !!
साथ रहने की क़सम, रात दिन जो खाता है !
क्या पता एक रोज़, वो भी बदल जायेगा !!
छिपकर के किसी रोज़, कहीं दांव खेलता है !
जीती बाज़ी कोई वो, फिर से हार जायेगा !
आज वो फिर से मुसीबत में घिरा लगता है !
वाकई कौन सगा है, पता चल जायेगा... !!
Friday, 25 March 2011
कोई
किसी ने शाख़ और टहनी को फिर दुरुस्त किया !
ज़मीं पे आज फिर बिखरा है आशियाँ कोई !!
किसी ने सोच समझ बोल कर रिश्ते बदले !
भरे बाज़ार में फिर दिख गया तनहा कोई !!
किसी की आरज़ू और किस की ख़ता के चलते !
बिना गुनाह कहीं बन रहा मुजरिम कोई !!
किसी के हुस्न और किस की अदाओं के सदके !
दिल से मजबूर हुआ दूर दीवाना कोई !!
किसी की प्यास पे हावी हुआ जुनूँ इतना !
भरी बरसात में भी रह गया प्यासा कोई !!
Thursday, 27 January 2011
एहसास
एहसास हुआ जैसे वो अपना सा कोई है,
दूर जाते हुए जब उसने पलट कर देखा !!
कोई सबमें भी है फिर भी है तनहा इतना,
चाँद के राज़ को जब पास से जाकर देखा !!
झील सी गहरी हैं फिर भी हैं कितनी भोली,
उनकी आँखों में जब आँखें मिलाकर देखा !!
चुप रहती हैं और चुपके से बोलती कितना,
आँखों से करते हुए उनको जो इशारे देखा !!
दूर जाते हुए जब उसने पलट कर देखा !!
कोई सबमें भी है फिर भी है तनहा इतना,
चाँद के राज़ को जब पास से जाकर देखा !!
झील सी गहरी हैं फिर भी हैं कितनी भोली,
उनकी आँखों में जब आँखें मिलाकर देखा !!
चुप रहती हैं और चुपके से बोलती कितना,
आँखों से करते हुए उनको जो इशारे देखा !!
Friday, 31 December 2010
साल कोई फिर ऐसा आये...
उगता सूरज, खिलती धरती, नीला अम्बर फिर मुस्काए !
जीवन बने सरल हम सबका, साल कोई फिर ऐसा आये !!
हार जाएँ अब ये आतंकी, अमन चैन जब पंख पसारे !
हों राहें खुशहाल हमारी, साल कोई फिर ऐसा आये !!
धरती उगले फिर से सोना, फसल खेत में फिर लहराए !
भूखे पेट कोई न सोये, साल कोई फिर ऐसा आये !!
भ्रष्टाचार दूर हो जाए, जन मन फिर कर्मठ बन जाए !
नेता सच्चे बने हमारे, साल कोई फिर ऐसा आये !!
अत्याचार ख़त्म हो सारा, कन्या भ्रूण सभी बच जाएँ !
पुरुष संग चलती हो नारी, साल कोई फिर ऐसा आये !!
दे पुकार रांझा जब दिल से, हीर दूर से दौड़ी आये !
होने लगे प्यार की बारिश, साल कोई फिर ऐसा आये !!
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
जीवन बने सरल हम सबका, साल कोई फिर ऐसा आये !!
हार जाएँ अब ये आतंकी, अमन चैन जब पंख पसारे !
हों राहें खुशहाल हमारी, साल कोई फिर ऐसा आये !!
धरती उगले फिर से सोना, फसल खेत में फिर लहराए !
भूखे पेट कोई न सोये, साल कोई फिर ऐसा आये !!
भ्रष्टाचार दूर हो जाए, जन मन फिर कर्मठ बन जाए !
नेता सच्चे बने हमारे, साल कोई फिर ऐसा आये !!
अत्याचार ख़त्म हो सारा, कन्या भ्रूण सभी बच जाएँ !
पुरुष संग चलती हो नारी, साल कोई फिर ऐसा आये !!
दे पुकार रांझा जब दिल से, हीर दूर से दौड़ी आये !
होने लगे प्यार की बारिश, साल कोई फिर ऐसा आये !!
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
Wednesday, 11 August 2010
सावन में पानी ?
क्यों नहीं आख़िर
क्यों नहीं ?
सावन में क्यों नहीं बरसता ?
पानी !!!!
जीवन में सूखे ठूंठों पर,
मुरझाई हुई आशाओं पर.
पथराती हुई आँखों से,
झूठी मुस्कुराहटों तक...
कहीं कुछ तो ज़रूर है,
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
अपनों के रिश्तों से,
परायों के बंधन तक.
सूखती हुई दोस्ती पर
हरियाती हुई दुश्मनी में
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
जीवन की गहराई से,
मरने की सच्चाई तक.
सूखते हुए कंठ से और
भूख से बिलबिलाने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है.....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
आँखों के शील से,
कुचली उत्कंठाओं तक.
रूप के सिमटने से,
मन के मचलने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
क्यों नहीं ?
सावन में क्यों नहीं बरसता ?
पानी !!!!
जीवन में सूखे ठूंठों पर,
मुरझाई हुई आशाओं पर.
पथराती हुई आँखों से,
झूठी मुस्कुराहटों तक...
कहीं कुछ तो ज़रूर है,
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
अपनों के रिश्तों से,
परायों के बंधन तक.
सूखती हुई दोस्ती पर
हरियाती हुई दुश्मनी में
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
जीवन की गहराई से,
मरने की सच्चाई तक.
सूखते हुए कंठ से और
भूख से बिलबिलाने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है.....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
आँखों के शील से,
कुचली उत्कंठाओं तक.
रूप के सिमटने से,
मन के मचलने तक
कहीं कुछ तो ज़रूर है....
तभी तो नहीं बरसता
सावन में पानी ?
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