Sunday 28 October 2007

थकान

क्यों होगी थकान अब मुझको ,
जीवन ही संगीत बन गया ।
कविता फिर से प्रेम रूप में ,
आई इस एकाकी मन में !!!
नींद खुली तो वंशी की धुन ,
पीत सांझ की मिलती लय में ।
ढलती हैं सूरज की किरने
फिर से उगने के प्रण में !!!
वन-पथ की उदास रातें हैं ,
छाया की फिर से तलाश है ।
चन्दन वन की चंद सुगंधें ,
महक रही हैं अब तन में !!!
पंछी रात समझ घर आये ,
सकुचाये स्वर फिर मुस्काये ।
दिल तो याद किया करता है ,
स्वप्न पुराने ले आंखों में !!!
आंसू सूख बन गए मोती ,
भरी नींद में खुली पलक पर ।
पूजन की ध्वनि पुनः सुनी है ,
दो झाँझर से एक धुन में !!!!

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