Monday, 12 October 2009

टुकड़े टुकड़े...

टकराकर वापस आती
प्रेम की सुखद अनुभूति
जो हो जाती है कभी
टुकड़े टुकड़े.....
कर जाती है मन को
अतृप्त गहरे तक व्यथित
जैसे हो चमन
उजड़े उजड़े......
बुन जाती है जीवन में
एक नया ताना बाना
पर ज़िन्दगी कटती है
सिकुड़े सिकुड़े.....
सुख की एक नई चाह में
अनचाहे में ही वह
बो जाती है रोज़ नए
झगड़े झगड़े......
बेचैन कर जो कुछ भी
कर नहीं सकती
सुना जाती है नए
दुखड़े दुखड़े...
दिल डूब रहा हो जब
यादों के अनंत भंवर में
दिखा जाती है वह प्यारे
मुखड़े मुखड़े....

No comments: