जीवन की सांसे तुमसे हैं,
जीने की राहें तुमसे हैं.
हाथ तुम्हारा साथ हमारे,
साथ तुम्हारा अच्छा है ....
दुर्बल होती श्रम शक्ति में,
मीरा की पवन भक्ति में .
सब कुछ खींचता पास हमारे,
साथ तुम्हारा अच्छा है...
मन की गांठें खुल जाने में,
नयी ग्रंथि फिर पड़ जाने में.
जीवन मुक्त अभी होने में,
साथ तुम्हारा अच्छा है...
गर्मी में पीपल सी छाया ,
शीतल जल जब फिर से पाया.
मन को ठंडक मिल जाने तक,
साथ तुम्हारा अच्छा है ....
कोई मिलता है जब फिर से,
दिल डरता है मेरा फिर से.
फिर से मुसका कर ये कह दूं,
साथ तुम्हारा अच्छा है........
मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
Thursday, 11 February 2010
Sunday, 20 December 2009
तुम्हीं हो ...
मत पूछो मेरे दिल से, मेरे दिल की चाह को।
पहली से आख़िरी सभी चाहत में तुम्हीं हो ॥
हो चाहें जितनी दुनिया, हों चाहे राहें कितनी ?
शुरुआत से अभी भी मेरी ज़न्नत में तुम्हीं हो।
हर एक की दुआ है कि, मिल जाये साथ तेरा ।
उठते हुए हर हाथ की मन्नत में तुम्हीं हो ॥
कुछ लोग जी गए थे, किसी और राह में ।
इस जिंदगी की राह और राहत में तुम्हीं हो॥
पहली से आख़िरी सभी चाहत में तुम्हीं हो ॥
हो चाहें जितनी दुनिया, हों चाहे राहें कितनी ?
शुरुआत से अभी भी मेरी ज़न्नत में तुम्हीं हो।
हर एक की दुआ है कि, मिल जाये साथ तेरा ।
उठते हुए हर हाथ की मन्नत में तुम्हीं हो ॥
कुछ लोग जी गए थे, किसी और राह में ।
इस जिंदगी की राह और राहत में तुम्हीं हो॥
Friday, 4 December 2009
मन की चाहत
जब जब याद तुम्हारी आई
मन के पंछी मुक्त हुए,
फिर से एक तमन्ना झांकी
दिल के सूने कोटर से.
देख तुम्हारी फिर तस्वीरें
दिल में आहट होती है,
कोयल जैसे निकल रही है
फिर बसंत के आने में.
तेरी चिट्ठी हाथ में आई
पंख लगे अरमानों को,
भीगे सूखे फिर से अक्षर
मन का सावन बरसा जब.
जीने के तो लाख बहाने
फिर भी मन को भाएं ना,
सात जनम फिर से लगते हैं
साथी सच्चा पाने में.
मन के पंछी मुक्त हुए,
फिर से एक तमन्ना झांकी
दिल के सूने कोटर से.
देख तुम्हारी फिर तस्वीरें
दिल में आहट होती है,
कोयल जैसे निकल रही है
फिर बसंत के आने में.
तेरी चिट्ठी हाथ में आई
पंख लगे अरमानों को,
भीगे सूखे फिर से अक्षर
मन का सावन बरसा जब.
जीने के तो लाख बहाने
फिर भी मन को भाएं ना,
सात जनम फिर से लगते हैं
साथी सच्चा पाने में.
Thursday, 12 November 2009
मेरे अरमां.....
मेरे अरमां मचल रहे हैं,
तेरे अब मचलेंगें कब ?
थोड़ी मेहर जो रब की हो तो,
पूरे होंगे अबकी सब....
थोड़ी झिझक बची है मुझमें,
थोड़ी तुझमें है बाकी.
तू जो हाथ थाम ले मेरा,
चाँद के पार चलेंगें हम....
घने कुहासे की चादर में
दिल ने फिर अंगडाई ली है.
याद वही फिर से आता है,
तेरी आहट मिलती जब....
तेरी भोली मुस्कानों में,
दिल के अरमां पलते हैं.
डूब के तेरी आँखों में अब,
जीवन फिर से लेंगें हम....
पल पल जीना मुश्किल है जब,
तू है मुझसे दूर कहीं .
आ के अपना हाथ बढ़ा दे
वरना डूब रहे हैं हम...........
Monday, 26 October 2009
तुमको आते देखा जब...
मौसम में फिर प्यार घुला है,
जीवन में बदला है सब ।
दिल ने फिर अंगडाई ली है
तुमको आते देखा जब।।
हरी घास पर ओस की बूँदें,
बैठी रहती धूप चढ़े तक।
हौले हौले भाप हो गयीं
तुमको आते देखा जब॥
इंतज़ार में अब तक तेरे,
घना कुहासा बढ़ता है।
सूरज फिर से निकल रहा है
तुमको आते देखा जब॥
थमी थमी सी बोझिल शामें
रुक रुक कर खामोश हुयीं।
जीवन चलने लगा नसों में
तुमको आते देखा जब॥
नर्म हथेली की गुन-गुन में,
धीमी आंच निरंतर रहती।
माथे पर उगती कुछ बूँदें
तुमको आते देखा जब॥
देख ऊंचाई चट्टानों की
फौलादी फिर हुए हौसले।
मन ने फिर संकल्प लिया है
तुमको आते देखा जब....
जीवन में बदला है सब ।
दिल ने फिर अंगडाई ली है
तुमको आते देखा जब।।
हरी घास पर ओस की बूँदें,
बैठी रहती धूप चढ़े तक।
हौले हौले भाप हो गयीं
तुमको आते देखा जब॥
इंतज़ार में अब तक तेरे,
घना कुहासा बढ़ता है।
सूरज फिर से निकल रहा है
तुमको आते देखा जब॥
थमी थमी सी बोझिल शामें
रुक रुक कर खामोश हुयीं।
जीवन चलने लगा नसों में
तुमको आते देखा जब॥
नर्म हथेली की गुन-गुन में,
धीमी आंच निरंतर रहती।
माथे पर उगती कुछ बूँदें
तुमको आते देखा जब॥
देख ऊंचाई चट्टानों की
फौलादी फिर हुए हौसले।
मन ने फिर संकल्प लिया है
तुमको आते देखा जब....
Monday, 12 October 2009
टुकड़े टुकड़े...
टकराकर वापस आती
प्रेम की सुखद अनुभूति
जो हो जाती है कभी
टुकड़े टुकड़े.....
कर जाती है मन को
अतृप्त गहरे तक व्यथित
जैसे हो चमन
उजड़े उजड़े......
बुन जाती है जीवन में
एक नया ताना बाना
पर ज़िन्दगी कटती है
सिकुड़े सिकुड़े.....
सुख की एक नई चाह में
अनचाहे में ही वह
बो जाती है रोज़ नए
झगड़े झगड़े......
बेचैन कर जो कुछ भी
कर नहीं सकती
सुना जाती है नए
दुखड़े दुखड़े...
दिल डूब रहा हो जब
यादों के अनंत भंवर में
दिखा जाती है वह प्यारे
मुखड़े मुखड़े....
प्रेम की सुखद अनुभूति
जो हो जाती है कभी
टुकड़े टुकड़े.....
कर जाती है मन को
अतृप्त गहरे तक व्यथित
जैसे हो चमन
उजड़े उजड़े......
बुन जाती है जीवन में
एक नया ताना बाना
पर ज़िन्दगी कटती है
सिकुड़े सिकुड़े.....
सुख की एक नई चाह में
अनचाहे में ही वह
बो जाती है रोज़ नए
झगड़े झगड़े......
बेचैन कर जो कुछ भी
कर नहीं सकती
सुना जाती है नए
दुखड़े दुखड़े...
दिल डूब रहा हो जब
यादों के अनंत भंवर में
दिखा जाती है वह प्यारे
मुखड़े मुखड़े....
Wednesday, 9 September 2009
जिंदगी
दिल खो गया है दिल का, या ये मेरी खता है.
मेरे अजीज़ खास, परेशान बहुत हैं..
उनके करीब होने से बदल जाती है दुनिया,
मेरी जिंदगी के सच से वो अनजान बहुत हैं..
हों राहें कितनी मुश्किल या दुश्वार मंजिलें ,
वो हमसफ़र जो हों तो सब आसान बहुत है..
मैं बच गया हूँ कैसे इन तूफानी राहों में,
ये देख के सब लोग अब हैरान बहुत हैं..
वो और रहे होंगें जिन्हें नाम की थी चाह,
मेरे खुदा के साथ मैं गुमनाम बहुत हूँ...
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