मैं बिखरा था,
जब भी मैंने ख़ुद को ढाँपा,
मेरा घाव खुला था.
मैं आया था,
मैं जाऊँगा,
जीवन भर मैंने खेला जो,
मेरा दांव खुला था.
मैं प्रेमी था,
उसको चाहा,
मेरी चाह हुई जब ज़ाहिर,
मेरा भाव खुला था.
वो दामन था,
कितना शीतल ?
वो फैला तो मैं जलता था,
उसका छाँव खुला था.
मैं भूला था,
अपना रस्ता,
उसको याद किया जब मैंने,
उसका ठांव खुला था.
अपना घर,
जब मैंने छोड़ा,
और चला फिर उसे ढूंढते
उसका गाँव खुला था........
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