फिर से वही वहशीपन , किसी को क्या मिला
इतनों को मौत देकर ?
क्यों नहीं हम हो जाते
एक साथ कदम मिला
तोड़ देने गुरूर
उस विचारधारा का
जो हमेशा से ही रही है
मानवता के विरुद्ध
अब तो मत सोओ
जागो जागो जागो
भारत अब तो जागो
निश्चय करो कि
अब नहीं बहने देंगें
इस तरह से किसी
अपने का लहू को
आंखों में चिंगारी जलाओ
सीने में ज्वालामुखी दहकाओ
कुछ भी करो पर
आँखें बंद कर
शुतुरमुर्ग तो न बनो
कि आज अगर ये आंच कहीं दूर है
तो कल को पास भी आ सकती है
मत छेड़ो किसी को अकारण
मत छोडो अकारण छेड़ने वाले को
मुंबई केवल शहर नहीं
हमारी धड़कन है
और धड़कन रुकनी नहीं चाहिए......
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