बनके दर्शक देखो मत,
प्रेम-गीत को पीछे छोड़ो,
मिलकर धावा बोलो अब.
लुधियाना अजमेर श्री नगर
बढती जाती संख्या है
अधिकारी पड़ोस को कोसें
पहने हाथ चूडियाँ हैं,
जो तारें पड़ोस में जाए उनको मिलकर नोचो सब,
प्रेमगीत को.........
हमें शान्ति है अच्छी लगती
उनको समझ नहीं आती,
आपस में लड़ने वालों को
बुद्धि कभी नहीं आती,
उनकी नादानी के मटके उनके सर पर फोड़ो अब,
प्रेम-गीत को........
भाई-चारे के चारे में
नेता फंसते जाते हैं,
और धमाके वो आतंकी
यहाँ वहां कर जाते हैं,
हाथ बढा कर आगे बढ़ कर उनके गर्दन तोड़ो अब,
प्रेम-गीत को.....
हो सतर्क अब सबकी आँखें और दिमाग़ बहुत चौकन्ना
युवा बढ़ चलें आगे आयें
चौड़ी छाती चौड़ा सीना
माँ की करुण पुकार सुनो तो शत्रु पे चढ़ जाओ तुम
प्रेम-गीत को पीछे छोड़ो मिलकर धावा बोलो अब..............
यह कविता पिछले वर्ष के आतंकी धमाकों के बाद लिखी थी बस केवल शहरों के नाम बदल रहे हैं और हम आज भी खून को धोने में ही लगे हैं....
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