मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं....
जो सपने देखे थे हमनेसिस्टम उनको निगल गया है.ब्रिटिश कूटनीति से निकलाउनका मतलब निकल गया है.आशुतोष प्रलयंकर बनकरइस सिस्टम को धूल चटाओसंविधान समेत डुबोदोभारत फ़िर जग में चमकाओ.आओ मिलकर करें चेष्टाप्रभु निश्चित ही यही चाहतेचीर इन्डिया भारत उभरेजन-गण-मन नित ही उचारते.
Post a Comment
1 comment:
जो सपने देखे थे हमने
सिस्टम उनको निगल गया है.
ब्रिटिश कूटनीति से निकला
उनका मतलब निकल गया है.
आशुतोष प्रलयंकर बनकर
इस सिस्टम को धूल चटाओ
संविधान समेत डुबोदो
भारत फ़िर जग में चमकाओ.
आओ मिलकर करें चेष्टा
प्रभु निश्चित ही यही चाहते
चीर इन्डिया भारत उभरे
जन-गण-मन नित ही उचारते.
Post a Comment