क्यों होगी थकान अब मुझको,
जीवन ही संगीत बन गया.
कविता फिर से प्रेम रूप में
आयी इस एकाकी मन में.
नींद खुली तो वंशी की धुन,
पीत साँझ की मिलती लय में
ढलती हैं सूरज की किरणें
फिर से उगने के प्रण में.
वन पथ की उदास रातें हैं,
छाया की फिर से तलाश है
चंदन वन की चंद सुगंधें,
महक रही हैं अब तन में.
पंछी रात समझ घर आए
सकुचाये स्वर फिर मुस्काए
दिल तो याद किया करता है
स्वप्न पुराने ले आंखों में.
आंसू सूख बन गए मोती,
भरी नींद में खुली पलक पर
पूजन की ध्वनि पुनः सुनी है
दो झांझर से इक धुन में.
3 comments:
क्यों होगी थकान अब मुझको
जीवन ही संगीत बन गया .............
कमाल है .... बेहतरीन कविता . आपकी कविता हमेशा कुछ नया करने की insipiration देती है. deep thoghts से निकली इस कविता की कुछ लाइंस इतनी अच्छी हैं की मैं बयां नहीं कर सकता
ख़ासकर
पंछी रात समझ घर आए
सकुचाये स्वर फिर मुस्काए
और
पूजन की ध्वनि पुनः सुनी है
दो झांझर से इक ही धुन में
खूबसूरत शब्द संयोजन/ i was also trying to write somthing new but never got time to go in that much depth. now your poem inspired me alot n this time i'll surely compose one.
thanks .nice poem
Ankit khare
wah bhaut kamaal kavita hai
aur sach kahte hain jinka jeevan sangeet ho wo kabhi nahi thakte
पूजन की ध्वनि पुनः सुनी है
दो झांझर से इक ही धुन में
wah
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