Friday, 17 July 2009

वह हमारा प्यारा बादल............

फिर से दिखा
क्या तुमने देखा ?
अब क्या करें
पहले तो बहुत आसानी
से ही दिख जाया
करता था.....
यह तो हम मनुष्य ही हैं
जिन्होंने छीन लिया
उसका प्राकृतिक आवरण
तभी तो आज वह
पता नहीं कहाँ लुप्त हो गया ?
काला-भूरा, श्याम श्वेत
और भी न जाने कितने
अवर्णित रंग लेकर
इन्द्रधनुष को अपने
आँचल पर फैलाये.....
आधुनिकता की दौड़ में
दिखावे की स्पर्धा में ..
कहीं हमने ही तो उसे
भगा नहीं दिया अपने से दूर
फिर भी पता नहीं
कहाँ चला गया
वह हमारा प्यारा बादल......

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

सच मुच......... पता नहीं कहाँ चला गया............. कहीं तो इतना बरसा की जीना मुश्किल, कहीं नज़र नहीं आता.............. सुन्दर रचना