Sunday 5 August 2007

कारगिल के योद्धा.....

भारत माता मत कर चिंता शत्रु सदा से हैं पाखंडी
तेरे लाल सदा तत्पर हैं हंस कर शीश चढाने को 
बर्फीली चोटी पर उसने, छिप कर वार किया फिर से,  
शांत चित्त मन को उसने किया सशंकित है फिर से, 
श्वेत बर्फ को सिन्दूरी, चादर अब फिर से पहनाने को, 
तेरे लाल..... 
कायर बन कर आता है वो रिसता घाव छोड़ जाता 
सुखी हो चुके जीवन को वो फिर से विष करता जाता  
ऊंचे पर्वत पर गौरव गाथा को फिर से अब लिख जाने को 
तेरे लाल.... 
तेरा है आशीष अभी माँ उसको मार भगाया है 
बचे हुओं के जीवन पे अब निश्चित संकट आया है, 
उसके घर में घुस कर फिर से ध्वंस आज कर जाने को  
तेरे लाल... 
पहन के अब केसरिया बाना, निकली है अपनी टोली, 
धूर्त शत्रु के रुधिर से होगी अब फिर से प्रचंड होली 
कश्मीरी हर दिल पर अपने तीन रंग फहराने को 
तेरे लाल सदा तत्पर हैं हंस कर शीश चढाने को......

No comments: